Friday, January 10, 2014

पिछले एक दशक में प्राप्‍त अंतरिक्ष विभाग की सफलताएँ

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का महत्व
अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण विकास, शिक्षा और साक्षरता, स्वास्‍थ्‍य सेवाएं और पर्यावरण के क्षेत्रों, आकाशपिंडों के अवलोकन के लिए बहुत उपयोगी है। अंतरिक्ष आधारित संचार प्रणालियों और धरती की इमेजिंग के नए तरीकों से दूर-दराज तक सूचनाएं तेजी से पहुंचेंगी और धरती के बारे में सही तरह से जांच करने में मदद मिलेगी।

 पिछले एक दशक में प्राप्‍त अंतरिक्ष विभाग की  सफलताएँ -
भारतीय क्रायोजैनिक इंजन और जीएसएलवी-5
5 जनवरी 2014 को जीएसएलवी-5 की उड़ान के दौरान देश में बने क्रायोजैनिक इंजन का सफल परीक्षण, भारत की इससे संबंधित प्रौद्योगिकी में बहुत बड़ी उपलब्धि थी। जीएसएलवी दो टन भार वाले संचार उपग्रह को भू-समकक्ष कक्षा (जीटीओ) में पहुंचा सकता है। यह क्षमता केवल 6 देशों के पास है, जिनमें भारत एक है । इससे पहले 2010 में जीएसएलवी-डी 3 और जीएसएलवी-एफ 06 की पिछली उड़ानों में भारत को लगातार दो असफलताएं मिली थी, जिसे भारत ने अपने दृढ़ निश्‍चय के साथ सुधार करके पार कर लिया।
      जीएसएलवी-डी 5 ने एक संचार उपग्रह जी सैट-14 को जीटीओ कक्षा में सही तरह से पहुंचा दिया है और यह ठीक तरह से काम कर रहा है।
मंगल परिक्रमा (मार्स ऑरबिटर) मिशन
      मंगलग्रह परिक्रमा का मिशन अंतरिक्ष यान 5 नवम्‍बर 2013 को पीएसएलवी-सी25 से भेजा गया। मंगलग्रह के लिए भेजे गए इस अंतरिक्ष यान से भारत विश्‍व के उन चार देशों में से एक हो गया है, जिन्‍होंने मंगलग्रह के लिए अंतरिक्ष मिशन भेजे हैं। इस मिशन का मुख्‍य उद्देश्‍य मंगलग्रह की कक्षा में पहुंचने से संबंधित भारतीय प्रौद्योगिक क्षमता को दर्शाना और मंगल की सतह की विभिन्‍न विशिष्‍टताओं की खोज करना है। अंतरिक्ष यान को मंगलग्रह की कक्षा में 24 सितम्‍बर 2014 को स्‍थापित किया जाएगा।
पीएसएलवी
      भारत का ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का 24 सफल उड़ानों का रिकार्ड है, जिसने भारत को अंतरिक्ष में पहुंचने के मामले में महत्‍वपूर्ण्‍ स्‍वायत्‍तता प्रदान की है। पिछले दशक में पीएसएलवी ने एक के बाद एक 15 सफल उड़ानें भरी और 23 भारतीय उपग्रहों तथा 31 विदेशी उपग्रहों को कक्षा में पहुंचाया। पीएसएलवी का उपयोग हल्‍के संचार और नेवीगेशन उपग्रहों को भू-समकक्ष कक्षा में पहुंचाने के लिए सफलतापूर्वक इस्‍तेमाल किया गया है। नवम्‍बर 2013 में मंगल ग्रह के लिए  भारत के पहले अंतर-ग्रह मिशन के सफल प्रक्षेपण का तथा सितम्‍बर 2008 में चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण का श्रेय पीएसएलवी को ही जाता है। 2008 में विभिन्‍न कक्षाओं में 10 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण पीएसएलवी की एक उल्‍लेखनीय उपलब्धि थी। 2007 में स्‍पेस कैपसूल रिकवरी एक्‍सपेरीमेंट मिशन एसआरई-1 के सफल प्रयोग ने कक्षा स्थित उपग्रह को रिकवर करने में भारत की प्रौद्योगिक क्षमता को साबित कर दिया था।
चंद्रमा के लिए भारत का मिशन
चंद्रमा की खोज के भारत के पहले मिशन चंद्रयान-1 को अक्‍तूबर 2008 में छोड़ा गया। इसने आक्‍सीजन और हाइड्रोजन परमाणु से युक्‍त हाइड्रोक्सिल (ओएच) अणु की खेाज की तथा चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं का पता लगाया, जिससे खोज को नई दिशा मिली।
दूर-संवेदन और राष्‍ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रणाली
भारतीय दूर संवेदन प्रणाली (आईआरएस), जिसके कक्षा में इस समय 11 उपग्रह हैं, विश्‍व में आज दूर-संवेदन उपग्रहों का सबसे बड़ा समूह है। यह उपग्रह इमेजिंग के जरिए देश के प्राकृतिक संसाधनों और विभिन्‍न विकास परियोजनाओं के प्रबंधन के लिए आवश्‍यक जानकारी उपलब्‍ध कराता है।
      पिछले दशक में 13 दूर-संवेदन उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। 2012 में रडार इमेजिंग उपग्रह (रिसैट-1) के सफल प्रक्षेपण से देश की इमेजिंग प्रौद्योगिकी काफी उन्‍नत हो गई। इस उपग्रह ने दिन और रात के दौरान हर मौसम में चित्र भेजे, जो कृषि और आपदा प्रबंधन की दृष्टि से महत्‍वपूर्ण थे। उष्‍ण कटिबंधीय क्षेत्रों के जलवायु के अध्‍ययन के लिए अक्‍तूबर 2011 में भारत और फ्रांस का संयुक्‍त उपग्रह मेघा-ट्रॉपीक्‍स भेजा गया। जुलाई 2013 में मौसम विज्ञान से संबंधित उपग्रह इनसैट-3डी भेजा गया, जिसे हिंद महासागर के ऊपर पेलोड के साथ स्थित किया गया। इससे इस क्षेत्र के विस्‍तृत जलवायु अध्‍ययन किए गए। आईआरएस उपग्रहों से प्राप्‍त जानकारी का इस्‍तेमाल कई सामाजिक आवश्‍यकताओं के लिए किया जा रहा है, जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों में पीने के पानी का पता लगाना, अधिक मछलियों वाले क्षेत्रों की जानकारी प्राप्‍त करना, पर्यावरण की स्थिति पर नजर रखना, फसलों के बारे में भविष्‍यवाणी और आपदा प्रबंधन। इस प्रकार की जानकारी अन्‍य देशों को भी दी जाती है।
इनसैट प्रणाली
इनसैट प्रणाली देश में विकसित संचार उपग्रहों का एशियाई क्षेत्र में सबसे बड़ा समूह है, जिससे दूर-संचार, टेलिविजन प्रसारण, मौसम विज्ञान और आपदा प्रबंधन से संबंधित सेवाएं प्राप्‍त होती हैं। इस प्रणाली को 12 इनसैट/जीसैट संचार उपग्रहों (232 ट्रांसपांडर क्षमता सहित) के प्रक्षेपण से और मजबूत किया गया है। 204 में शिक्षा से संबंधित उपग्रह एजुसैट भेजा गया। देश के लगभग 25 राज्‍यों में 55000 से अधिक एजुसैट कक्षाएं चलाई गईं। इनसैट प्रणाली से देश के टैली-मेडिसन और ग्रामीण स्रोत केंद्रों के माध्‍यम से आम आदमी को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के लाभ पहुंचाए गए।
उपग्रह संचालन (नेवीगेशन)
पिछले दशक में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से जुड़ा महत्‍वपूर्ण प्रयास था। उपग्रह आधारित नेवीगेशन प्रणाली भारत उपग्रह नेवीगेशन कार्यक्रम को विभिन्‍न प्रयोगों के लिए चला रहा है। भारत में उपयोग कर्ताओं को तथा भारत से 1500 किलोमीटर तक की दूरी के क्षेत्र में स्थिति के बारे में सही सूचना देने के लिए भारतीय क्षेत्रीय नेवीगेशन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) शुरू की गई है। 7 उपग्रहों में से पहला उपग्रह आईआरएनएसएस-1ए का जुलाई 2013 में सफल प्रक्षेपण किया गया। इसके अलावा इसरो और भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण ने जीपीएस सहायक नेवीगेशन (गगन) कार्यक्रम शुरू किया है। गगन के पेलोड जीसैट-8 और जीसैट-10 उपग्रहों में रखे गए हैं।
अंतरिक्ष वाणिज्‍य/एंट्रिक्‍स
एंट्रिक्‍स कॉरपोरेशन लिमिटेड भारत की अंतरिक्ष क्षमता की दुनियाभर में मार्केटिंग कर रही है। इसरो की वाणिज्‍यक और विपणन शाखा के रूप में एंट्रिक्‍स दुनियाभर के अंतर्राष्‍ट्रीय ग्राहकों को अंतरिक्ष उत्‍पाद और सेवाएं प्रदान कर रही है। इसरो के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी से पिछले 10 वर्षों के 17 देशों के 31 उपग्रह व्‍यावसायिक आधार पर अंतरिक्ष में भेजे गए हैं। पिछले दशक की एक और महत्‍वपूर्ण उपलब्धि है- दो उच्‍च शक्ति वाले संचार उपग्रह डब्‍ल्‍यू 2 एम और एचवाईएलएएस, जो यूरोपीय ग्राहकों के लिए हैं, जिनका अनुबंध एंट्रिक्‍स ने कड़ी स्‍पर्धा के बाद प्राप्‍त किया। इसके अलावा भारत के दूर-संवेदन उपग्रहों से प्राप्‍त जानकारी भी दुनियाभर में व्‍यावसायिक आधार पर दी जाती है। एंट्रिक्‍स, इनसैट प्रणाली के ट्रांसपोंडर वाणिज्यिक उद्देश्‍य के लिए लीज़ पर भी देता है।
अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग
      च्ंद्रमा के लिए भारत के पहले मिशन चंद्रयान-1 में अमरीका और यूरोप के छह वैज्ञानिक उपकरण थे। भारत-फ्रांस सहयोग के माध्‍यम से दो उपग्रह मिशन मेघा-ट्रापिक्‍स और सरल, संचालित किए गए। भारत और रूस के युवा वैज्ञानिकों ने अंतरि‍क्ष में मौसम अध्‍ययनों के लिए एक उपग्रह यूथसैट भेजा है। मंगल परिक्रमा मिशन के लाभ के लिए भारत, अमरीका की जैट प्रोपलशन लैबोरेटरी के साथ सहयोग कर रहा है तथा भारत और अमरीका दोनों मिलकर 2019-20 में एक दोहरे बैंड वाले रडार इमेजिंग उपग्रह बना रहे हैं। पिछले एक दशक के दौरान भारत ने विभिन्‍न देशों और अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ सहयोग के 10 नए अनुबंधों पर हस्‍ताक्षर किए हैं।

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