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Monday, September 9, 2013
साक्षरता
साक्षरता
भारत ने इस वर्ष प्रतिष्ठित यूनेस्को किंग सीजोंग साक्षरता पुरस्कार जीता है।साक्षरता सामाजिक-आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण पैमाना है। इसकी सकारात्मकता बहुत गहराई तक जाती है। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने कहा था और उसे दोहराता हूं: ” साक्षरता विपत्ति से आशा की तरफ जाने का पुल है। यह आधुनिक समाज में दैनिक जीवन के साधन है। यह गरीबी के विरुद्ध प्राचीर है और विकास का निर्माण खंड है, सड़कों, बांधों, क्लीनिक और कारखानों में निवेश का महत्वपूर्ण पूरक है। साक्षरता लाकतंत्रीकरण के लिए मंच है तथा संस्कृति और राष्ट्रीय पहचान को प्रोत्साहन देने का वाहन है .............. अंत में, साक्षरता मानव प्रगति के लिए सड़क है तथा ऐसा माध्यम है जिसके जरिए प्रत्येक पुरुष, महिला और बच्चा अपनी पूरी क्षमता हासिल कर सकता है। ”
साक्षरता बुनियादी मानव जरूरत है। यह आजीवन सीखने सहित सभी श्रेणी की शिक्षा के लिए आधारस्तंभ है। यह स्थायी विकास और उसके फलस्वरूप शांति एवं सामंजस्य में मुख्य भूमिका निभाती है। मुझे खुशी है कि साक्षरता, शांति और विकास पर ध्यान केंद्र करने के साथ इस साल भारत में मनाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस के साथ यह समझ और मजबूत होती है।
हमारी विकास प्रक्रिया में इन मानदंडों के बीच संबंध पर शायद उस हद तक बल नहीं दिया जाता है जितनी कि जरूरत है। हमारे देश में और बाहर भी सबसे अधिक विवादित इसकी जड़ें अज्ञानी मस्तिष्कों में तथा जानकारी को तोड़ने-मरोड़ने में हैं। निरक्षर या जानकारी रहित व्यक्तियों के मन गलत जानकारी भरना और उनके दिमाग में उसकी गलत धारणा बनाना आसान है। दूसरी तरफ साक्षर मस्तिष्क शांति एवं विकास पर केंद्रित प्रक्रिया में योगदान देता है। अक्षरों के ज्ञान के जरिए व्यक्ति की सोचने की क्षमता बढ़ती है। उच्च स्तर की साक्षरता से ज्यादा जागरूकता आती है। यह नए कौशल सीखने के जरिए समृद्धि और विकास हासिल करने में लोगों की मदद कर सकती है। साक्षर समाज में, खासतौर से आयु, नवजात शिशु की मृत्यु दर, सीखने का स्तर और बच्चों का पोषाहार स्तर के मामले में जीवन स्तर बेहतर होता है।
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस इस दिन(8th september) दुनिया भर में मनाया जाता है। यह इस सामाजिक बुराई के बारे में जनता को ज्यादा जागरूक बनाने और निरक्षरता से संघर्ष जारी रखने के पक्ष में लोगों की राय जुटाने का अवसर है। यह इसके उन्मूलन की दिशा में हमारी प्रतिबद्धता को पुनः नया रूप देता है। यह खुशी की बात है कि स्वतंत्रता के बाद हमारे देश में साक्षरता के स्तर में स्थिर रूप से प्रगति हुई है। साक्षरता दर 1951 में 18 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 74 प्रतिशत हो गई है। इसके बावजूद हमारी साक्षरता दर विश्व के औसत 84 प्रतिशत से कम है। इसका कारण पता करना बहुत मुश्किल नहीं है। पहले से निरक्षरों के कारण साक्षरता दर में महत्वपूर्ण वृद्धि हासिल करने का कार्य ज्यादा मुश्किल हो जाता है।
समय आ गया है कि हम अपनी साक्षरता दर में सुधार करने के लिए अपने प्रयासों को और सशक्त और केंद्रित बनाएं। यह परिकल्पना की गई है कि 12वीं पंच वर्षीय योजना के आखिर तक, हम 80 प्रतिशत साक्षरता दर हासिल कर लेंगे तथा स्त्री-पुरुष के बीच अंतर को 16 से घटाकर 10 पर ले आएंगे। हमारा परम उद्देश्य साक्षरता दर को न सिर्फ विश्व औसत के बराबर लाना होना चाहिए बल्कि इसे अग्रणी राष्ट्रों के स्तर तक पहुंचाना होना चाहिए। लड़की और महिलाओं पर अपना ध्यान केंद्रित करके साक्षरता स्तरों में स्त्री और पुरुष के बीच मौजूदा अंतर को दूर करना होगा। हमें राष्ट्रीय, राज्य, जिला, विकास खंड और ग्राम पंचायत - हर स्तर पर अपनी मशीनरी को दुरस्त करना होगा। सरकारी एजेंसियों के साथ-साथ गैर सरकारी एवं निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठित संगठनों को शामिल करके कार्यान्वयन प्रणाली को मजबूत बनाना होगा। मुझे विश्वास है कि सभी हितधारकों और खासतौर से साक्षरता के लिए कार्य करने वालों प्रतिबद्धता के साथ हम यह लक्ष्य हासिल कर लेंगे।
कमजोर करने वाले अनेक कारक साक्षरता में हमारी प्रगति, खासतौर से प्रौढ़ साक्षरता को बाधित कर रहे हैं। इसके लिए वास्तविक योजना बनाने की जरूरत है। इसके महत्व को समझते हुए सरकार ने इसी दिन चार साल पहले साक्षर भारत कार्यक्रम शुरू किया था। इस पहल का उद्देश्य प्रौढ़ शिक्षा और साक्षरता के मानकों में सुधार के जरिए पूरी तरह साक्षर समाज की स्थापना करना था। इस कार्यक्रम के तहत 15 वर्ष की आयु और उससे ऊपर के 7 करोड़ लोगों कामकाजी साक्षरता प्रदान करने का प्राथमिक लक्ष्य था। वास्तविक धारातल पर सीखने और सिखाने की गतिविधियां चलाने के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर प्रौढ़ शिक्षा केंद्र बनाए गए। बुनियादी साक्षरता और औपचारिक शिक्षा प्रणाली के समकक्ष शिक्षा के लिए सीखने का आकलन करने और प्रमाणन देने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान को सौंपी गई। मुझे बताया गया है कि 2 करोड़ से अधिक लोगों को साक्षर के रूप में प्रमाणित किया जा चुका है।
प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह उभरते बदलावों को कितनी अच्छी तरह से आत्मसात करेगा। एक अनित्य एजेंट के रूप में काम करने के बजाय इस मिशन को नियमित एवं स्थायी प्रणाली के रूप में ढालना होगा।
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