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Sunday, September 15, 2013
रीयल एस्टेट (विनियमन और विकास) विधेयक, 2013
रीयल एस्टेट (विनियमन और विकास) विधेयक, 2013
प्र1. रीयल एस्टेट क्षेत्र के विनियमन की ज़रूरत क्यों है ?
उ. रीयल एस्टेट क्षेत्र देश में आवासीय और अवसंरचना की ज़रूरत और मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है लेकिन व्यावसायिकता और मानकीकरण नहीं होने तथा उपभोक्ता को पर्याप्त संरक्षण देने में कमी के कारण यह मुख्य रूप से अनियंत्रित क्षेत्र रहा है जिसने इस उद्योग की स्वस्थ्ा और व्यवस्थित वृद्धि को अवरूद्ध किया है।
साथ ही इस क्षेत्र के विनियमन पर विभिन्न मंचों, फोरम तथा मीडियों रिपोर्टों में ज़ोर दिया गया है। हाल के समय में उपभोक्ता कार्य मंत्रालय, प्रतिस्पर्धा आयोग तथा टैरिफ आयोग ने भी इसके विनियमन के लिए बार-बार कहा है।
प्र2. इस विधेयक के सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान क्या हैं?
उ. प्रस्तावित विधेयक रिहायशी रीयल एस्टेट यानी आवास तथा कोई अन्य आनुषांगिक आवासीय के स्वतंत्र उपयोग पर लागू होता है। हालांकि यह समझना जरूरी है कि इस विधेयक के तहत केवल ‘लेन-देन’ यानी रिहायशी रीयल एस्टेट को खरीदने तथा बेचने के कार्य को ही विनियमित करना है न कि ‘निर्माण कार्य’ को जो कि राज्यों/यूएलबी का अधिकार है।
इस विधेयक का उद्देश्य इस क्षेत्र में पारदर्शिता लाना है। इसमें प्रमोटर के उल्लिखित कामकाज तथा कार्यों के साथ परियोजना की सभी जानकारी को अनिवार्य रूप से सार्वजनिक करने का प्रावधान है।
इस विधेयक में त्वरित विवाद निवारण व्यवस्था के लिए रीयल एस्टेट प्राधिकरण और अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रावधान है।
इसके प्रावधानों में से एक स्पष्ट उत्तरदायित्वों और कामकाजों के साथ रीयल एस्टेट एजेंटों का रजिस्ट्रेशन करना है जिन पर अभी तक नियंत्रण नहीं था। इससे दो पक्षों के बीच लेन-देन का प्रमाण मिलेगा तथा मनी लांड्रिंग पर काबू पाया जा सकेगा।
सभी विनियामक विधेयकों के जैसे विधेयक के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करना तथा उसे लागू न करने पर दंडात्मक प्रावधान भी हैं। दंडात्मक प्रावधानों के तहत परियोजना का रजिस्ट्रेशन रद्द करना तथा प्राधिकरण या न्यायाधिकरण के आदेशों या विधेयक के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जुर्माना लगना भी शामिल है।
प्र3. कुछ लोग इसे लोकवादी कदम बता रहे हैं, रीयल एस्टेट के संगठन क्रेडाई (सीआरईडीएआई) ने कहा है कि प्रस्तावित कानून के ज़रिए केवल डेव्लपर्ज़ को ही नहीं बल्कि उद्योग के सभी हितधारकों को शासित किया जाना चाहिए ?
उ. टेलीकॉम, प्रतिभूमि, बीमा, बिजली आदि की तर्ज पर रीयल एस्टेट के क्षेत्र में भी विनियामक की काफी ज़रूरत है। इस क्षेत्र में विनियामक सूचकांक में भारत का स्थान काफी नीचे है। इसमें घरेलू और विदेशी निवेश होने पर गतिविधियां बढ़ाने के साथ सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की जा सकती थी।
प्रस्तावित विधेयक में इस क्षेत्र में ‘लेन-देन’ को विनियमित किया गया है तथा ‘लेन-देन’ में शामिल सभी हितधारकों यानी प्रोमोटरों/विक्रेता, आवंटी/खरीदार तथा रीयल एस्टेट एजेंट को उल्लिखित कामकाज और कार्य के साथ विनियमित किया गया है।
इस विधेयक में ‘निर्माण कार्य’ पर विनियमन नहीं है। यह राज्यों/यूएलबी का अधिकार है। डेव्लपर्ज़ की मुख्य चिंता परियोजना संबंधी मंज़ूरी के मामले में एक ही जगह सुविधा की ज़रूरत है। इसके लिए मेरे मंत्रालय ने एक विशेषज्ञ समिति गठित की है जिसमें उद्योग संगठनों के प्रतिनिधि भी होंगे जो राज्यों को ऐसी व्यवस्था लागू करने की सिफारिश करेंगे।
जहां तक रीयल एस्टेट विधेयक का सवाल है इसका दायरा केवल लेन-देन को देखना हैा अत: यह इसमें शामिल सभी पक्षों को विनियमित करता है।
प्र4. रीयल एस्टेट नियामक विधेयक के तहत इस क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है, लेकिन ऐसा दावा किया जा रहा है कि संसद में इस विधेयक के पारित हो जाने से कीमतें 30 प्रतिशत तक बढ़ेंगी ?
उ. यह सच नहीं है और ऐसे अनुमान न जाने कहां से लगाए गए हैं। विधेयक का उद्देश्य सूचना के आदान-प्रदान के लिए ऑनलाइन व्यवस्था बनाकर उपभोक्ता का संरक्षण करना है ताकि डेव्लवर्ज़ और खरीदारों के बीच आपसी विश्वास हो और परियोजनाओं को समय पर लागू किया जा सके।
इस विधेयक के लागू होने से इस क्षेत्र में गतिविधि बढ़ेगी जिससे बाज़ार में और अधिक आवासीय इकाइयां आएंगी। इससे निवेश के लिए ज़रूरी विश्वास पैदा होगा तथा बेचे जा रहे घरों की कीमतों में स्थिरता आएगी।
इस विधेयक का उद्देश्य उपभोक्ताओं और प्रोमोटरों को फायदा पहुंचाने के साथ समग्र रूप से इस क्षेत्र को लाभ पहुंचाना है।
प्र5. सरकारी एजेंसियों से मंज़ूरी मिलने के कारण देरी। केवल रिहायशी परियोजनाओं का ही नियमन क्यों तथा व्यावसायिक रीयल एस्टेट को इसके तहत क्यों नहीं लाया गया?
उ. सरकारी एजेंसियों से मंज़ूरी मिलने के कारण देरी होने के मुद्दे पर आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय सभी राज्यों को परियोजनाओं की मंज़ूरी के लिए एक ही जगह सुविधा उपलब्ध कराने की व्यवस्था अपनाने की सलाह दे रहा है जो विधेयक के प्रावधानों में शामिल नहीं है और यह एक अलग कार्य है।
एक बिंदू जिसे अक्सर छोड दिया जाता है कि प्रस्तावित विधेयक के तहत केवल रिहायशी रीयल एस्टेट की बिक्री का नियमन होगा और न कि उसे विकसित करने का। प्रमोटर विकास कार्य करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन इस विधेयक के तहत जो प्रावधान है कि वह उसे तभी बेच सकता है जब उसके पास हर तरह से मंज़ूरी हो और उसने इस विधेयक के तहत विनियामक के पास परियोजना का पंजीकरण कराया हो।
विधेयक का दायरा रिहायशी संपत्तियों तक सीमित रखने से विनियामक का इस पर पूरा ध्यान रहेगा तथा इसमें उपभोक्ताओं की ज़रूरत पर भी गौर किया जाएगा।
प्र6. जो परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं या उसमें निर्माण कार्य चल रहा है, 4000 वर्ग मीटर से कम की परियोजनाओं के लिए विनियामक के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है। तो अनेक छोटे डेव्लपर्ज पंजीकरण तथा नियमन के नियंत्रण में नहीं आएंगे?
उ. प्रारंभिक मसौदे में 4000 वर्ग मीटर का प्रावधान था जिसे राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ विचार-विमर्श के बाद घटाकर 1000 वर्ग मीटर या 12 अपार्टमेंट कर दिया गया है (जो भी लागू हो)। साथ ही यह विधेयक विशेष रूप से प्रत्याशित विनियमन होगा।
प्र7. वास्तविक कार्पेट एरिया का उल्लेख करना अनिवार्य हो गया है, डेव्लर्ज सुपर बिल्ट एरियों के आधार पर फ्लैट बेच रहे हैं जिसमें आने-जाने के लिए सामान्य रस्ता, सीढियां तथा अन्य क्षेत्र शामिल है यानी वास्तविक फ्लैट एरिया से 20-30 प्रतिशत अधिक?
उ. विधेयक के अनुसार प्रमोटरों को, बिक्री के लिए अपार्टमेंट की संख्या कार्पेट एरिया के आधार पर बतानी होगी। कार्पेट एरिया को परिभाषित किया गया है। खरीदार को मालूम होना चाहिए कि वो वास्तव में किसके लिए भुगतान कर रहा है और उसे क्या मिल रहा है। सुपर बिल्ट आदि जैसे विषय भ्रमित करने वाले है और विधेयक का उद्देश्य आवश्यकताओं का मानकीकरण करना है। इससे रीयल एस्टेट में लेन-देन में व्याप्त विषमताओं में कमी आएगी।
रीयल एस्टेट विधेयक, 2013 में रीयल एस्टेट और आवासीय लेनदेन में पारदर्शिता, निष्पक्षता और नीतिपरक व्यावसायिक प्रणाली को बढ़ावा
रीयल एस्टेट (विनियमन और विकास) विधेयक 2013 में लेनदेन के संबंध में पारदर्शिता, निष्पक्षता और नीतिपरक व्यावसायिक कार्यप्रणाली को बढ़ावा देने, परियोजना के विवरण का खुलासा और परियोजना तथा खरीदार के संबंध में अनुबंधों की कानूनी बाध्यताओं का विशेष रूप से प्रावधान किया गया है जिसमें खरीदारों के लिए पूरी जानकारी के साथ चयन की व्यवस्था की गई है। परियोजना के विवरण की जानकारी देने से रीयल एस्टेट संबंधी लेनदेन में व्याप्त विषमताओं को दूर करने में मदद मिलेगी।
इस समय रीयल एस्टेट और आवास क्षेत्र काफी हद तक अनियंत्रित और अस्पष्ट है, जिससे उपभोक्ताओं को अक्सर इस संबंध में पूरी जानकारी नहीं मिल पाती, अथवा प्रभावकारी नियमों के अभाव में बिल्डरों और डेवलपरों की जवाबदेही तय नहीं हो पाती। उम्मीद है कि यह विधेयक उपभोक्ताओं के प्रति अधिक जवाबदेही तय करेगा और जालसाजी और परियोजना के पूरा होने में होने वाली देरी में पर्याप्त कमी लायेगा। इस विधेयक का उद्देश्य रीयल एस्टेट और आवास से जुड़े लेन-देन में पारदर्शिता लाने के साथ ही जवाबेदही तय करके आम जनता का विश्वास बहाल करना है जिससे इस क्षेत्र की पूंजी और वित्तीय बाजारों तक पहुंच हो सकेगी जो इसकी दीर्घकालिक वृद्धि के लिए अनिवार्य है।
परियोजना के बारे में विस्तृत प्रावधान इस प्रकार है:-
प्राधिकार को आवेदन
अनुच्छेद 4 (1): प्रत्येक प्रमोटर रीयल एस्टेट परियोजना के पंजीकरण के लिए प्राधिकार में आवेदन कर सकता है। यह आवेदन प्राधिकार द्वारा बनाए गए नियमों के भीतर होगा।
(2) प्रमोटर को उप-अनुच्छेद (1) में उल्लेखित आवेदन के साथ निम्नलिखित दस्तावेजों को लगाना होगा:-
(क) अपने उद्यम का संक्षिप्त ब्यौरा जिसमें उसका नाम, पंजीकृत पता, उद्यम का प्रकार (स्वामित्व, सोसायटी, साझेदारी, कम्पनियां, सक्षम अधिकारी) और पंजीकरण का ब्यौरा शामिल है;
(ख) आवेदन में उल्लिखित रीयल एस्टेट परियोजना के लिए लागू कानूनों के अनुसार सक्षम अधिकारी से प्राप्त परियोजना के आरंभ होने के संदर्भ में प्रमाण पत्र की प्रमाणित प्रति जो रीयल एस्टेट परियोजना पर लागू होती है, और इस परियोजना को विभिन्न चरणों में कहां-कहां आगे बढ़ाया जाएगा, इसका आवेदन में जिक्र हो। इस तरह के प्रत्येक चरण के लिए सक्षम अधिकारी की मंजूरी की प्रमाणित प्रति;
(ग) प्रस्तावित परियोजना अथवा चरण का खाका और साथ ही सक्षम अधिकारी द्वारा मंजूर संपूर्ण परियोजना का नक्शा;
(घ) प्रस्तावित परियोजना के लिए किए जाने वाले विकास कार्यों की योजना और उसके बाद दी जाने वाली प्रस्तावित सुविधाएं;
(ड.) एलाटमेंट पाने वालों के साथ हस्ताक्षर किए जाने वाले प्रस्तावित समझौतों का प्रारूप;
(च) परियोजना में बिक्री वाले अपार्टमेंटों की संख्या और कारपेट एरिया;
(छ) प्रस्तावित परियोजना के लिए रीयल एस्टेट एजेंट का नाम और पता, यदि कोई है;
(ज) ठेकेदार, वास्तुकार, ढांचा इंजीनियर, यदि कोई हो और प्रस्तावित परियोजना के विकास से जुड़े अन्य व्यक्तियों के नाम और पते;
(झ) एक हलफनामे के साथ घोषणापत्र, जिसमें प्रमोटर अथवा प्रमोटर द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर हों, जिसमें कहा गया हो-
(1) कि जिस भूमि पर विकास प्रस्तावित है, उस पर उसे कानूनी अधिकार प्राप्त है। इसके साथ ही इस जमीन का स्वामित्व किसी अन्य व्यक्ति के पास रहता है तो भी उसे कानूनी अधिकार प्राप्त है।
(2) कि भूमि सभी तरह की बाधाओं से मुक्त है अथवा इस तरह की जमीन पर अधिकारों, शीर्षक, दिलचस्पी अथवा किसी पक्ष का नाम सहित किसी प्रकार की बाधा नहीं है;
(3) वह अवधि जिसके भीतर कोई भी व्यक्ति परियोजना अथवा चरण को पूरा करने का वचन लेता है;
(4) कि एक योग्य सरकार की समय-समय पर जारी अधिसूचना के अनुसार प्रमोटर को रीयल एस्टेट परियोजना के लिए तय राशि का 70 प्रतिशत अथवा उससे कम प्रतिशत की परियोजना राशि, वसूली के 15 दिन के भीतर एक अलग खाते में जमा करानी होगी जिसे निर्माण की लागत को पूरा करने के लिए एक अनुसूचित बैंक में रखा जायेगा और इस राशि का इस्तेमाल इसी कार्य के लिए किया जाएगा।
व्याख्या – इस खंड के लिए ‘’अनुसूचित बैंक’’ का अर्थ है ऐसा बैंक जिसे भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल किया गया है;
(5) कि उसने वह दस्तावेज जमा कराए हैं जिनका इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए नियमों और शर्तों में उल्लेख किया गया है; और
(6) इस तरह की कोई अन्य सूचना और दस्तावेज
प्रमोटर के कार्य और कर्तव्य
अनुच्छेद 11. (1) : प्रमोटर (क) अनुच्छेद 5 के उप-अनुच्छेद (1) अथवा अनुच्छेद 5 के उप-अनुच्छेद (2) के अंतर्गत अपना लॉग-इन और पासवर्ड प्राप्त करने पर प्राधिकरण की वेबसाइट पर अपना वेब-पेज बना सकता है और अनुच्छेद 4 के उप-अनुच्छेद (2) के अंतर्गत प्रदान की गई सभी जानकारियों को प्रस्तावित परियोजना में डाल सकता है-जिसमें शामिल है-
(क) प्राधिकार द्वारा दिया गया पंजीकरण का विवरण;
(ख) बुक किए गए अपार्टमेंटों अथवा प्लाटों की संख्या और प्रकार की संपूर्ण अद्यतन सूची प्रत्येक तिमाही पर;
(ग) परियोजना की अद्यतन स्थिति के बारे में तिमाही जानकारी और;
(घ) प्राधिकार द्वारा बनाए गए नियमों में दी गई इस तरह की अन्य सूचना और दस्तावेज
(2) प्रमोटर द्वारा जारी अथवा प्रकाशित विज्ञापन अथवा विवरणिका में प्राधिकार की वेबसाईट का पता साफ-साफ हो, जबकि पंजीकरण परियोजना के सभी विवरणों को शामिल किया जाए तथा प्राधिकार से प्राप्त पंजीकरण संख्या और इस तरह के अन्य मामलों को शामिल किया जाए।
(3) एलॉटमेंट पाने वाले के साथ बिक्री संबंधी समझौता करते समय प्रमोटर को एलॉटमेंट पाने वाले को निम्नलिखित जानकारी उपलब्ध करानी होगी:-
(क) प्राधिकार द्वारा बनाए गए निर्दिष्ट नियमों के अनुसार सक्षम अधिकारियों द्वारा मंजूर स्थान और नक्शे की योजनाओं को विर्निदेशों के साथ जगह पर अथवा इस तरह के अन्य स्थानों पर लगाया जाए।
(ख) पानी, स्वच्छता और बिजली के प्रावधानों सहित परियोजना के पूरा होने की चरणवार समय-सारिणी
(4) प्रमोटर को-
(क) उचित सक्षम अधिकारी से स्थानीय कानूनों अथवा अन्य कानूनों के अनुसार कम्प्लीशन सर्टिफिकेट लेना होगा और इसे एलॉटमेंट पाने वालों को अलग-अलग अथवा एलॉटमेंट पाने वालों के सहयोगियों को उपलब्ध कराना होगा, जैसी भी स्थिति हो;
(ख) प्रमोटर आवश्यक सेवाएं प्रदान करने और उनके रख-रखाव के लिए जिम्मेदार होगा जैसा कि सेवा स्तर के समझौतों में निर्दिष्ट किया गया है;
(ग) एलॉटमेंट पाने वालों, उनके किसी फेडरेशन के मामले में एक एसोसिएशन अथवा सोसायटी अथवा सहकारी सोसायटी के गठन के लिए कदम उठाए।
(5) प्रमोटर बिक्री समझौते की शर्तों में केवल एलॉटमेंट रद्द कर सकता है:
बशर्ते एलॉटमेंट पाने वाला राहत के लिए अधिकारी के पास जाए, अगर वह रद्द करने की इस तरह की प्रक्रिया से असंतुष्ट है और यह प्रक्रिया बिक्री के अनुसार, एकतरफा और बिना किसी पर्याप्त कारण के है।
(6) प्रमोटर प्राधिकार द्वारा बनाए गए समय-समय पर अन्य तरह के विवरण तैयार करें और उनकी संभालें।
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