Tuesday, October 7, 2025

 

नमस्ते! किचन के कचरे से कम्पोस्ट (जैविक खाद) बनाना बहुत ही आसान और फायदेमंद है। इससे आपका कचरा कम होता है और पौधों के लिए मुफ्त की पौष्टिक खाद तैयार हो जाती है।
पेश है कम्पोस्ट बनाने का सबसे आसान तरीका, जिसे कोई भी अपने घर में अपना सकता है:
जरूरी सामान (Samagri)
कंटेनर: एक मध्यम आकार की बाल्टी, मटका (मिट्टी का घड़ा) या कोई पुराना डस्टबिन।
ढक्कन: कंटेनर को ढकने के लिए।
हवा के लिए छेद: कंटेनर में हवा जाने के लिए उसमें नीचे और साइड में कुछ छेद कर लें।
गीला कचरा (हरा कचरा): आपके किचन से निकलने वाला।
सूखा कचरा (भूरा कचरा): यह बहुत जरूरी है।
कम्पोस्ट में क्या डालें और क्या न डालें?
✅ क्या डालें (हरा कचरा - Nitrogen):
सब्जियों और फलों के छिलके
बची हुई चाय की पत्ती और कॉफ़ी पाउडर
अंडे के छिलके (बारीक करके)
पूजा के पुराने फूल और पत्तियां
बची हुई दाल या सब्ज़ी (बिना तेल-मसाले वाली)
✅ क्या डालें (सूखा कचरा - Carbon):
सूखी पत्तियां (यह सबसे अच्छा विकल्प है)
गत्ते या कार्डबोर्ड के छोटे-छोटे टुकड़े
अखबार के टुकड़े
नारियल के जूट या छिलके
लकड़ी का बुरादा
❌ क्या बिल्कुल न डालें:
पका हुआ तेल-मसाले वाला खाना
मांस, मछली या हड्डियां
दूध, दही, पनीर जैसे डेयरी उत्पाद
प्लास्टिक, कांच या धातु
बीमार पौधों के हिस्से
खाद बनाने का तरीका (Step-by-Step Process)
कदम 1: कंटेनर तैयार करें
सबसे पहले अपने चुने हुए कंटेनर (बाल्टी या मटके) में नीचे की तरफ और साइड में 4-5 छेद कर लें ताकि हवा आती-जाती रहे। कंटेनर के नीचे एक ट्रे रख दें ताकि अगर कोई तरल निकले तो वो उसी में जमा हो।
कदम 2: पहली परत बिछाएं
कंटेनर में सबसे नीचे 2-3 इंच मोटी सूखे कचरे (जैसे सूखी पत्तियां या गत्ते के टुकड़े) की एक परत बिछाएं। यह अतिरिक्त नमी को सोख लेगी।
कदम 3: गीला कचरा डालें
अब इसके ऊपर अपने किचन से निकला हुआ गीला कचरा (फलों-सब्जियों के छिलके) डालें।
कदम 4: सूखे कचरे से ढकें (सबसे जरूरी कदम)
यह सबसे महत्वपूर्ण कदम है। गीला कचरा डालने के बाद, उसे हमेशा सूखे कचरे की एक परत से अच्छी तरह ढक दें। ऐसा करने से कम्पोस्ट में से बदबू नहीं आएगी और कीड़े-मकोड़े भी नहीं लगेंगे।
कदम 5: प्रक्रिया दोहराते रहें
रोजाना इसी प्रक्रिया को दोहराएं: पहले गीला कचरा डालें, फिर उसे सूखे कचरे से ढक दें। जब तक आपका कंटेनर भर न जाए, तब तक ऐसा करते रहें।
कदम 6: हफ्ते में एक बार मिलाएं
हर 5-7 दिन में एक बार किसी डंडे या खुरपी की मदद से पूरे मिश्रण को ऊपर-नीचे कर दें (पलट दें)। ऐसा करने से हवा का संचार अच्छा होता है और खाद जल्दी बनती है।
कदम 7: नमी बनाए रखें
ध्यान दें कि मिश्रण में हल्की नमी बनी रहे। यह छूने पर नम लगना चाहिए, लेकिन निचोड़ने पर पानी नहीं निकलना चाहिए। अगर यह बहुत सूखा लगे, तो हल्का सा पानी छिड़क दें।
खाद कब तैयार होगी?
लगभग 2 से 3 महीनों में आपकी खाद बनकर तैयार हो जाएगी। तैयार खाद की पहचान है:
यह गहरे भूरे या काले रंग की होगी।
यह भुरभुरी होगी।
इसमें से मिट्टी जैसी सोंधी खुशबू आएगी, किसी तरह की बदबू नहीं।
जब खाद तैयार हो जाए, तो उसे किसी छन्नी से छान लें। मोटे टुकड़ों को वापस कम्पोस्ट बिन में डाल दें। अब आपकी घर की बनी पौष्टिक खाद पौधों में डालने के लिए तैयार है!

Tuesday, January 30, 2018

घर में लगे LED बल्ब से चलेगा इंटरनेट, 10 जीबी प्रति सेकेंड की स्पीड से डेटा होगा ट्रांसफर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया के सपने को पूरा करने के लिए हर मुमकिन कदम उठाए जा रहे है। आज के इस दौर में 4 जी इंटरनेट तो हर कोई इस्तेमाल कर रहा है लेकिन अगर घर में लगे एलईडी बल्ब से वाईफाई या ब्रॉडबैंड बिना हाईस्पीड डेटा ट्रांसफर की फैसिलिटी मिल जाए तो कुछ काम और ज्यादा आसान हो जाए। इसी के लिए भारत सरकार एक ऐसी टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग कर रही है जो इसके अलावा बहुत से फीचर्स मुहैया करा सकती है।
हाल ही में एक प्रोजेक्ट के तहत इन्फर्मेशन ऐंड टेक्नॉलजी मिनिस्ट्री ने इस तकनीक का सफल टेस्ट किया है। इस नई तकनीक को लाई-फाई तकनीक का नाम दिया गया है। इसमें 10 जीबी प्रति सेकेंड तक की स्पीड से एक किलोमीटर के दायरे में डेटा ट्रांसमिशन वाले एलईडी बल्ब और लाइट स्पेक्ट्रम यूज किए जाते हैं। इस टेस्टिंग का मकसद उन बीहड़ इलाकों तक इंटरनेट कनेक्टिविटी पहुंचाना है जहां फाइबर केबल तो नहीं पहुंचा है लेकिन बिजली जरूर है। इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अस्पतालों को कनेक्ट करने में किया जा सकता है जहां कुछ इक्विपमेंट्स के चलते इंटरनेट सिग्नल हमेशा टूटता रहता है। इसके जरिए अंडरवॉटर कनेक्टिविटी भी मुहैया करार्इ जा सकती है।
इस नई तकनीक के बारे में इस प्रोजक्ट को चला रही नीना पहुजा का कहना है कि आने वाले समय में देश के भविष्य में स्मार्ट सिटीज में लाई-फाई तकनीक काफी काम की होगी, यहां इंटरनेट की जरुरत होगी और इसे इस तकनीक के जरिए पूरा किया जा सकेगा।
इस प्रोजेक्ट पर अभी आईआईटी मद्रास के साथ काम चल रहा है, इसमें एलईडी बल्ब बनाने वाली कंपनी फिलिप्स भी अपना सहयोग दे रही है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस अपने इस प्रोजक्ट का इस्तेमाल बेंगलुरु में करना चाहता है।
फिलिप्स लाइटिंग इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर सुमित जोशी ने का कहना है कि  ‘हम नई तकनीकों को लाए जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इस क्षेत्र में नई तकनीकों पर काम करते रहेंगे।